वादों पर इरादों की विजय की बाट जोहते योग प्रशिक्षित

@desk.भारत ऋषियों मुनियों,मनीषियों की ज्ञान परंपरा का संवाहक देश, अपनी नैसर्गिक सुंदरता के साथ साथ आध्यात्मिक पर्यटन का भी मुख्य आकर्षण रहा है। यहाँ की आबोहवा और वातावरण में रची बसी संस्कृति और आध्यात्म की खुशबू इस देश को दुनिया के बाकी हिस्से से अलग विशिष्ट बनाती है। पिछले कई दशकों की मेहनत और लगातार प्रयासों से भारत में योग एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में स्थापित हुआ है। इसका कारण यह भी है कि योग एक विज्ञान और जीवन शैली के रूप में विश्व के जनमानस में अपना स्थान बना रहा है।

बहरहाल अभी हमारा मुख्य बिंदु देश में योग प्रशिक्षितों की दशा पर एक सार्थक बहस तैयार करना है। आखिर क्यूँ एक इतने महत्वपूर्ण विषय पर सरकार और जनता दोनों खामोश रह सकती हैं?
विगत कई वर्षों में सरकार ने अपनी नीतियों में योग को प्रमुखता से स्थापित करने के कई प्रयास किए हैं। देश ने अपनी ख्याति के अनुसार योग में पूरे विश्व के सामने एक नजीर पेश की है, जहाँ देश विदेश से इच्छुक लोग योग सीखने के लिए भारत का रुख कर रहे हैं। इस संबंध में सरकार ने योग प्रशिक्षितों को तैयार करने के लिए बाकायदा योग प्रशिक्षण केंद्र और विवि में योग विभागों को बढ़वा देकर योग प्रशिक्षण के विभिन्न केंद्र तैयार किए। लेकिन इसके बाद की प्रक्रिया का कोई रोडमैप आज तक नजर नहीं आता। भारत में योग में उच्च शिक्षित डॉक्टरेट, एमफिल, पीएचडी, डी लिट, राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण, योग प्रशिक्षितों की एक बड़ी संख्या तैयार है जो चाहती है एक संसाधन के रूप में उनका प्रयोग सरकार करे।
ऐसे वक्त में जब योग पूरे देश और दुनिया में जीवनशैली का एक अनिवार्य अंग बन चुका है, तो सरकारें आखिर इन योग प्रशिक्षितों की ओर ध्यान क्यूँ नहीं देतीं। कई वर्षों से योग के प्रशिक्षित बेरोजगार सरकार की एक निगाह का इंतजार कर रहे हैं जो उनकी तरफ उठेगी और उनकी खबर लेगी। भारत देश में सरकार की यह भी योजना थी कि धीरे धीरे स्कूलों में योग को एक विषय के रूप में स्थापित करके विद्यालयों में योग शिक्षकों की नियुक्ति की जाएगी। लेकिन वादे और योजनाएँ हमेशा की तरह ही हवाई सिद्ध हुए। आलम यह है कि विभिन्न प्रदेशों के योग प्रशिक्षित अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।
योग एक कठिन साधना वाला विषय है। जिस प्रशिक्षित ने इसके लिए अपने जीवन के कई साल इसके अध्ययन में गुजार दिए हों, वह व्यक्ति क्या इसके लिए एक अदद रोजगार का भी हकदार नहीं है
वह भी तब जब आज योग हम सबके जीवन को स्वस्थ और निरोग रखने के साधन के रूप में संपूर्ण विश्व में मान्यता हासिल कर चुका है।
विद्यालयों में योग शिक्षकों की नियुक्ति महज योग प्रशिक्षितों को रोजगार प्रदान करने का साधन हो, ऐसा नहीं है। योग को विद्यालय स्तर से ज्यादा विद्यार्थियों की जीवनशैली का अंग बनाया जाएगा तो यह उनके मानसिक और शारीरिक विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनाएगा। जैसी की कहावत है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है। हमें उम्मीद है कि सरकारें अपने वादों और योजनाओं पर एक बार नजर घुमा कर देखेंगी और कोशिश करेंगी कि योग प्रशिक्षतों का सर्वोत्तम प्रयोग देश के भविष्य निर्माण में हो सके।
आयुष मंत्रालय भारत सरकार के द्वारा हैल्थ वैलनेस सेंटर योजना का शुभारंभ निःसंदेह एक अच्छी अनूठी पहल है।किंतु ग्रामीण अंचलों में आम जनमानस को उतना लाभ नहीं मिल पा रहा है जितना मिलना चाहिए वजह योग प्रशिक्षक की आंशिक उपलब्धता।हैल्थ वैलनेस सेंटर में कार्यरत योग प्रशिक्षक मात्र 1घंटे को ही उपलब्ध रहते हैं।आयुष मंत्रालय इन योग प्रशिक्षकों को पूरे चिकित्सालय समय इनकी उपलब्धता सुनिश्चित करे।जिससे योग में रोजगार के अवसरों की उपलब्धता बढ़ेगी और इसके साथ साथ योग प्रशिक्षक पूर्णकालिक स्थाई नियुक्ति से सम्मानजनक जीवन यापन कर सकेंगे।
भारत सरकार चिकित्सा स्वास्थ्य पर प्रतिवर्ष अरबों रुपए का बजट खर्च करती है योग आयुर्वेद को प्रोत्साहन देकर योग प्रशिक्षकों को स्थाई नियुक्ति देकर खर्च होने वाले बजट को बचाया जा सकता है। ग्रामीण जनमानस योग आयुर्वेद अपना कर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करेंगे तथा बजट की बड़ी धनराशि को देश की उन्नति प्रगति में प्रयोग किया जा सकता है।
(लेखक एक योग प्रशिक्षक हैं उपरोक्त लेख में लेखक के स्वयं के विचार हैं )
लेखक-विभाकर उपाध्याय
(योग प्रशिक्षक)